स्वामी सच्चिदानंदजी का स्थूल शरीर चाचोड़ा जिला गुना के एक आद्यात्मिक परिवार में हुआ ,वहा बाबा भीम गिरी जी के आशीर्वाद से आप जन्म से ही ,या ये कहूँ कि पूर्व जन्मो से ही अस्तित्व के साधना पथ के पथिक थे ,बचपन में पिता के प्रभु प्रेमी संस्कार इनकी माता की भगवत भक्ती इन्हे मां के दूध से ही मिली ,बचपन से मां के साथ राम ,कृष्ण ,विष्णु ,शंकर की साधना करते रहे ,माता पिता ने इनको रामायण, गीता ,सुखसागर, कल्याण ,पुराण,आदि दस वर्ष की आयु में ही सुनाये पढाये ,परन्तु स्वामीजी केवल सत्य को खोजते रहे ,तरह तरह की साधनाए पूरे मनोयोग से करते रहे उनकी निस्सारता का बोध होते ही उनको छोड़ते रहे ,किसी अज्ञात संत की प्रेरणा से बचपन में जब आठ्बी कक्षा में पड़ते थे एक आश्रम में चले गये वहा साधना की ,अस्तित्व की कृपा हमेशा साथ रही ,कक्षा १० वी से गायत्री साधना की ,शा. डिग्री कालेज गुना में पड़ते समय हनुमानजी की साधना की ,फिर गायत्री साधना एवं अन्य साधना से इन्हे सिद्दी प्राप्त हुई परन्तु केवल परमात्मा को छोडकर इन्हे कुछ मंजूर ना था अत; सिद्धियों को परमात्मा को समर्पित कर आगे की साधना करते रहे ,बाबा चन्दन गिरी महाराज निमंदड वालो ने इनको निराकार ,निरंजन परमात्मा जो आत्म स्वरूप के रूप में मोजूद है को जानने की ललक लगाई,उपनिषद ,वेद,दादू, पल्टू ,कबीर ,मीरा ,की वानियाँ सुनाई और जाग्रत ,स्वप्न ,सुसुप्ती ,तुरीय ,तुतीयातीत ,स्थूल शुक्ष्म , कारन ,महाकर्ण का प्रायोगिक ज्ञान कराया ,नेती धोती कपालभाती ,गज्करनी आदि क्रियाये सिखाई ,बाबा सिद्ध पुरुष थे और १५० वर्ष से अधिक आयु के थे आपने स्वामीजी को भरपूर प्रेम दिया ,बाबा संगीत की दिव्यता से भी भरे थे खूब गा गा कर वाणी सुनते थे स्वामी जी भी उनके साथ गाते धीरे धीरे स्वामीजी का ह्रदय निर्मल होता गया प्रेम प्रवेश करता गया ,बाबा ने अपना शरीर, स्वामीजी को उनका सबकुछ देकर छोड़ दिया और समय आने पर आत्म साक्षात्कार का पक्का भरोसा और आशीष भी दिया ,बाबा के साथ स्वामीजी साढ़े छः वर्ष खंडवा म.प्र. के जंगलो में रहे ...इसके बाद स्वामीजी को एक नाथ योगी स्वामी ब्रह्स्पती नाथ मिले उनने स्वामीजी को हठ योग ,योग कियाये ,जडी बूटियों का ज्ञान कराया वेसे तो संग्रह करते आ रहे थे स्वामी जी और्वेदिक ज्ञान का ,और फिर विज्ञान के स्नातक भी थे ,नाथ सम्प्रदाय की समस्त योग -ज्ञान सम्पदा नेती धोती चाचरी भूचरी अगोचरी न्योली उनमुनी बज्रोली बस्ती ,जड़ समाधी ,सहज समाधी नील बिंदु साधना ,दुसरे साधक में ज्योति प्रकट करना आदि आनेको गोपनीय साधनाए की ,यह सब पाने के बाद ,नाद ,बिंदु ,ज्योती को पाकर स्वामीजी ने हजारो लोगो की शराब ,मांसाहार की प्रब्रती छुडाई ,सामाजिक सेवा कार्य किये ,गरीबो के जीवन की दिशा और दशा को ठीक किया ,इसी बीच स्वामी ब्रहास्पती नाथ ने भी समाधी ले ली और उनके महा समाधी में लीन होने के वाद जब स्वामी जी को अधुरा पन खटकने लगा तब उनने कुछ समय मुम्बई बज्रेश्ब्री गणश्पुरी में गुजारे परन्तु वहां भी फीकापन लगा ,तब आत्मसाक्षात्कारी महापुरुषों की तलाश करते रहे ,ओशो को १९७१ में इंदौर में मिले थे ,परन्तु धन अभाव और साथ ना मिलने के कारण ,ओशो को पढ़ते रहे उस से आगे के मापदंड मिलते रहे मिथ्या को लात मरने का साहस ओर योग्यता आयी ,इस यात्रा में अनेको ढोंगी मिथ्या अगुरु स्वामीजी के जीवन में आये उनसे भी स्वामीजी ने कुछ ना कुछ सीखा परन्तु कालनेमि की तरह उन्हें हटाते गये अंत में एक अज्ञात गुरु जो स्वामी ज्ञानानंद जी के शिष्य है की सहायता से स्वामीजी को ८ अगस्त १९९८ सुबह ८.४५ को घटना घटित हुई ,आत्मज्ञान हुआ बुद्ध्त्ब अस्तित्व में जागे तबसे उसी में जीते रहे है सन २००३ से स्वामीजी को गुरु पद प्राप्त हुआ तबसे वे कहते है कि जैसे वे भटके वैसी भटकन ,परमात्मा के सच्चे प्रेमियों को नहीं हो ,इसलिए बेशर्त प्रेम और सेवा कर रहे है ,उनका कार्य केवल उन लोगो के लिए है जो बुद्ध्त्ब में जागना चाहते है ,अस्तित्व को जानना कहते है ,अपने आप को जानना चाहते है जीवन मुक्त होना कहते है ,स्वामीजी को संसार की कोई वास्तु नहीं चाहिए उन्हें तो केवल परमात्मा के सच्चे प्रेमी और उन तक पहुचने के लिए साधक चाहिए इसलिए मेरे कहने पर वे फेस बुक पर आये है ,,,धन्यवाद
स्वामी सच्चिदानंद का स्थूल शरीर चाचोड़ा जिला गुना के एक आद्यात्मिक परिबार में हुआ ,वहा बाबा भीम गिरी जी के आशीर्बाद से आप जन्म से ही ,या ये कहूँ कि पूर्ब जन्मो से ही अस्तित्ब के साधना पथ के पथिक थे ,बचपन में पिता के प्रभु प्रेमी संस्कार इनकी माता की भगबत भक्ती इन्हे मां के दूध से ही मिली ,बचपन से मां के साथ राम ,कृष्ण ,बिष्णु ,शंकर की साधना करते रहे ,माता पिता ने इनको रामायण, गीता ,सुखसागर, कल्याण ,पुराण,आदि दस बर्ष की आयु में ही सुनाये पढाये ,परन्तु स्वामीजी केबल सत्य को खोजते रहे ,तरह तरह की साधनाए पूरे मनोयोग से करते रहे उनकी निस्सारता का बोध होते ही उनको छोड़ते रहे ,किसी अज्ञात संत की प्रेरणा से बचपन में जब आठ्बी कक्षा में पड़ते थे एक आश्रम में चले गये वहा साधना की , अस्तित्ब की कृपा हमेशा साथ रही ,कक्षा १० बी से गायत्री साधना की ,शा. डिग्री कालेज गुना में पड़ते समय हनुमानजी की साधना की ,फिर गायत्री साधना एबम अन्य साधना से इन्हे सिद्दी प्राप्त हुई परन्तु केबल परमात्मा को छोडकर इन्हे कुछ मंजूर ना था अत; सिध्धयो को परमात्मा को समर्पित कर आगे की साधना करते रहे ,बाबा चन्दन गिरी महाराज निमंदड बालो ने इनको निराकार ,निरंजन परमात्मा जो आत्म स्वरूप के रूप में मोजूद है को जानने की ललक लगाई,उपनिषद ,बेद,दादू, पल्टू ,कबीर ,मीरा ,की वानियाँ सुनाई और जाग्रत ,स्वप्न ,सुसुप्ती ,तुरीय ,तुतीयातीत ,स्थूल शुक्ष्म , कारन ,महाकर्ण का प्रायोगिक ज्ञान कराया ,नेती धोती कपालभाती ,गज्करनी आदि क्रियाये सिखाई ,बाबा सिद्ध पुरुष थे और १५० बर्ष से अधिक आयु के थे आपने स्वामीजी को भरपूर प्रेम दिया ,बाबा संगीत की दिब्यता से भी भरे थे खूब गा गा कर वाणी सुनते थे स्वामी जी भी उनके साथ गाते धीरे धीरे स्वामीजी का ह्रदय निर्मल होता गया प्रेम प्रबेश करता गया ,बाबा ने अपना शरीर, स्वामीजी को उनका सबकुछ देकर छोड़ दिया और समय आने पर आत्म साक्षात्कार का पक्का भरोसा और आशीष भी दिया ,बाबा के साथ स्वामीजी साढ़े छः बर्ष खंडवा म.प्र. के जंगलो में रहे ...इसके बाद स्वामीजी को एक नाथ योगी स्वामी ब्रह्स्पती नाथ मिले उनने स्वामीजी को हठ योग ,योग कियाये ,जडी बूटियों का ज्ञान कराया बैसे तो संग्रह करते आ रहे थे स्वामी जी आयुर्बेदिक ज्ञान का ,और फिर बिज्ञान के स्नातक भी थे ,,नाथ सम्प्रदाय की समस्त योग -ज्ञान सम्पदा नेती धोती चाचरी भूचरी अगोचरी न्योली उनमुनी बज्रोली बस्ती ,जड़ समाधी ,सहज समाधी नील बिंदु साधना ,दुसरे साधक में ज्योति प्रकट करना आदि आनेको गोपनीय साधनाए की ,यह सब पाने के बाद ,नाद ,बिंदु ,ज्योती को पाकर स्वामीजी ने हजारो लोगो की शराब ,मांसाहार की प्रब्रती छुडाई ,सामाजिक सेबा कार्य किये ,गरीबो के जीबन की दिशा और दशा को ठीक किया ,इसी बीच स्वामी ब्रहास्पती नाथ ने भी समाधी ले ली और उनके महा समाधी में लीन होने के वाद जब स्वामी जी को अधुरा पन खटकने लगा तब उनने कुछ समय मुम्बई बज्रेश्ब्री गणश्पुरी में गुजारे परन्तु वहां भी फीकापन लगा ,तब आत्मसाक्षात्कारी महापुरुषों की तलाश करते रहे ,ओशो को १९७१ में इंदौर में मिले थे ,परन्तु धन अभाब और साथ ना मिलने के कारन ,ओशो को पढ़ते रहे उस से आगे के मापदंड मिलते रहे मिथ्या को लात मरने का साहस ओर योग्यता आयी ,इस यात्रा में अनेको ढोंगी मिथ्या अगुरु स्वामीजी के जीबन में आये उनसे भी स्वामीजी ने कुछ ना कुछ सीखा परन्तु कालनेमि की तरह उन्हें हटाते गये अंत में एक अज्ञात गुरु जो स्वामी ज्ञानानंद जी के शिष्य है की सहायता से स्वामीजी को ८ अगस्त १९९८ सुबह ८.४५ को घटना घटित हुई ,आत्मज्ञान हुआ बुद्ध्त्ब अस्तित्ब में जागे तबसे उसी में जीते रहे है सन २००३ से स्वामीजी को गुरु पद प्राप्त हुआ तबसे बे कहते है कि जैसे वे भटके वैसी भटकन ,परमात्मा के सच्चे प्रेमियों को नहीं हो ,इसलिए बेशर्त प्रेम और सेबा कर रहे है ,उनका कार्य केबल उन लोगो के लिए है जो बुद्ध्त्ब में जागना चाहते है ,अस्तित्ब को जानना कहते है ,अपने आप को जानना चाहते है जीबन मुक्त होना कहते है ,स्वामीजी को संसारकी कोई बस्तु नहीं चाहिए उन्हें तो केबल परमात्मा के सच्चे प्रेमी और उन तक पहुचने के लिए साधन चाहिए इसलिए मेरे कहने पर बे फेस बुक पर आये है ,,,धन्यबाद